राज ठाकरे का राजनीतिक रूपांतरण: अस्तित्व की कहानी
राज ठाकरे

महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में एक उल्लेखनीय परिवर्तन हो रहा है – यह एक ऐसे नेता की कहानी है जो वंशवादी राजनीति की जटिलताओं के बीच अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

उदय और पतन

साल 2006 में राज ठाकरे ने अपनी राजनीतिक पहचान बनाने के सपने के साथ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की स्थापना की। उनके शुरुआती कदम साहसिक और आशाजनक थे – 2009 में, पार्टी ने विधानसभा चुनावों में 13 सीटें हासिल कीं, जो एक नई राजनीतिक शक्ति की शुरुआत का संकेत लग रहा था। पार्टी के पास 5.71% वोट शेयर था, और समर्थकों को एक उज्जवल भविष्य दिखाई दे रहा था।

लेकिन इसके बाद जो हुआ वह लगातार गिरावट की कहानी थी। 2014 तक, पार्टी की उपस्थिति घटकर केवल एक सीट रह गई, और उनका वोट शेयर घटकर 3.15% हो गया। यह गिरावट जारी रही, और 2019 तक, उनके पास केवल एक सीट बची थी, जिसका वोट शेयर मात्र 2.25% था।

महान परिवर्तन

इस राजनीतिक कहानी का शायद सबसे दिलचस्प अध्याय है राज ठाकरे का नाटकीय रूपांतरण। एक समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कड़े आलोचक, अब भाजपा के प्रबल समर्थक के रूप में उभरे हैं। यह यू-टर्न राजनीतिक जगत में भौंहें चढ़ाने वाला है, खासकर 2019 के आम चुनावों के दौरान उनकी पिछली स्थिति को देखते हुए, जब वे मोदी और भाजपा के खिलाफ जोरदार प्रचार कर रहे थे।

आज, ठाकरे को प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा करते हुए देखा जा सकता है, भाजपा को अपना एकमात्र सच्चा राजनीतिक सहयोगी घोषित करते हुए। इस गठबंधन ने नए द्वार खोले हैं – जिसमें माहिम क्षेत्र से उनके बेटे अमित ठाकरे की उम्मीदवारी के लिए भाजपा का समर्थन भी शामिल है।

वर्तमान चुनौतियां

2024 के चुनावों के करीब आते हुए, राज ठाकरे कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं:

  1. वोट बैंक की दुविधा: पार्टी को एक विशिष्ट वोट बैंक स्थापित करने में संघर्ष करना पड़ रहा है, अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ एक ही मराठी मतदाताओं के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही है।
  2. नेतृत्व संकट: टिकट वितरण के मुद्दों के कारण एक समय के वफादार पार्टी सदस्य पार्टी छोड़ रहे हैं, जिससे संगठनात्मक ढांचा कमजोर हो रहा है।
  3. पहचान का संकट: जिन मुद्दों ने कभी मनसे को परिभाषित किया – मराठी अस्मिता और प्रवासियों का विरोध – वे अब अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता खो चुके हैं।
  4. वंशवाद की चुनौतियां: माहिम में, जहां राज ने अपने बेटे अमित को उतारा है, लड़ाई विशेष रूप से तीव्र है। पिछले चुनावों में 19,000 वोटों का महत्वपूर्ण अंतर दिखाता है जिसे पाटने की जरूरत है।

आशा की किरण

इन चुनौतियों के बावजूद, एक उम्मीद की किरण है। माहिम में विशेष रूप से भाजपा का समर्थन महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। हालांकि स्थापित कांग्रेस उम्मीदवार गंभीर खतरा पेश करते हैं, भाजपा की मशीनरी का समर्थन वह बूस्ट प्रदान कर सकता है जिसकी मनसे को जरूरत है।

आगे का रास्ता

राज ठाकरे के लिए, 2024 सिर्फ एक और चुनाव से कहीं अधिक है – यह राजनीतिक प्रासंगिकता के लिए एक लड़ाई है। अपनी पार्टी की पहचान बनाए रखते हुए अपने बेटे का राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करने में उनकी सफलता यह तय करेगी कि क्या यह राजनीतिक रूपांतरण पुनर्जीवन की ओर ले जाएगा या और गिरावट की ओर।

जैसे-जैसे महाराष्ट्र इस राजनीतिक नाटक को देख रहा है, एक बात स्पष्ट है: राज ठाकरे की यात्रा भारतीय राजनीति की जटिल प्रकृति का प्रतिनिधित्व करती है, जहां अस्तित्व अक्सर खुद को फिर से आविष्कार करने की क्षमता पर निर्भर करता है, जबकि मूल समर्थकों को बनाए रखना भी जरूरी होता है।

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